समस्त अध्यात्मवेत्ता – महात्मा तत्त्वेता-अवतारी के अग्रदूत मात्र

आत्म -ज्योति रूप आत्मा वाले समस्त अध्यात्मवेत्ता सन्त-महात्मा ही परमतत्त्व (आत्मतत्त्वम्) शब्द-रूप परम ब्रह्म या परमेश्वर या परमात्मा वाले तत्त्ववेत्ता –अवतारी सत्पुरुष के अग्रदूत मात्र ही होते हैंजो परमब्रह्म या परमात्मा द्वारा हीघोर नास्तिकता के कगार पर पहुँचे हुये संसार में आस्तिकता एवं भगवान् या परमात्मा की लहर को फैलाकर परमात्मा के अवतरण का मार्ग प्रशस्त करने तथा परमात्मा के प्रति आस्था एवं विश्वास हेतु ही भू-मण्डल पर प्रेषित कर दिये जाते है।अर्थात् अधिकाधिक मात्रा में उत्पन् या प्रकट कराकर भू-मण्डल पर चारों तरफ ही विखेर दिये जाते हैं कि परमतत्त्वम् (आत्मतत्त्वम्) शब्द रूप परमात्मा का अवतरण होकर धर्म की स्थापना के साथ ही साथ सज्जनों की रक्षा-व्यवस्था तथा दुष्ट-अत्याचारियों का विनाश करके सम्पूर्ण संसार में ही शान्ति और आनन्द रूप अमन-चैन का राज्य कायम करें। यह सारी व्यवस्था परमात्मा के ही निर्देशन में परमात्मा के पूर्व व्यवस्था कायम करने हेतु आदि शक्ति द्वारा की जाती है। समस्त अध्यात्मवेत्ता सन्त –महात्मा ही अपने प्रवचन में परमब्रह्म या परमेश्वर या परमात्मा या परमहंस या को जानने और दर्शन करते हुये पहचान करउन्हीं के शरणागत होने के लिये उत्प्रेरित करते रहते हैं, परन्तु भगवद् प्रेमी श्रधालु एवं जिज्ञासु जब जानने एवं दर्शन हेतु आतुर हो जाते हैंतब तुरन्त आत्म-ज्योति को दर्शाकर यह बता दिया करते हैं कि यह आत्म-ज्योति ही परम ब्रह्म या परमेश्वर या परमात्मा हैंजब कि वह आत्म-ज्योति आत्मा या ब्रह्म या ईश्वर या हँस मात्र ही होती है। इतना ही नहीं ये (अध्यात्मवेत्ता गण) आत्मा और परमात्मा ब्रह्म और परम ब्रह्म या ईश्वर और परमेश्वर या हँसो और परम तत्त्व रूप आत्मतत्त्वम् तथा योग-साधना और तत्त्वज्ञान-पद्धति अथवा परा विद्या और विद्या तत्त्व गुरु सद्गुरु; सन्त महात्मा और अवतारी सत्पुरुष के यथार्थ अन्तर को भी समाप्त करकेदोनों को एक ही का पर्याय घोषित कर –करवा देते हैं जो इन महानुभावों का भ्रामक एवं मिथ्या उपदेश प्रचार रूप भगवद् प्रेमी भक्तों के साथ जबर्दस्त एवं व्यापक स्तर पर धोखा के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है। जब कि ये अच्छी तरह से जानते हैं कि अवतार होने वाला रहता है और वर्तमान में तो यहाँ तक भी जानकारी अप्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप में हो चुकी है कि परमात्मा का अवतार हो चुका हैफिर भी ये कितने बड़े मिथ्याज्ञानाभिमानी बन गये हैं कि सब आभास होने के बावजूद भि अपने पीछे धन-जन में फंस कर अपने स्वामी रूप परमात्मा से ही मुख मोड़ ले रहे हैं। इन्हें यह भी मालूम है कि अंत में परमात्मा के प्रति शरणागत होना ही पड़ेगा। फिर भी समय रहते नहीं सम्हलते।

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