चोरी,डकैती एवं घूसखोरी जढ़ता में भी भ्रष्टता-मूलक कार्य

जड-चेतन रूप दो पदार्थों के मेल से कर्त्तार रूप परमप्रभु के निर्देशन में आदि-शक्ति ने गुण-दोष रूप दो विधानों से सृष्टि की उत्पत्तिसंचालन एवं संहार करती-कराती है जिसमें समस्त वस्तु मात्र ही (शरीर सहित) तो जड-पदार्थ के अन्तर्गत आता है तथा जीवजीवात्मा तथा आत्मा चेतन-सत्ता के अन्तर्गत आता है तथा गुण और दोष आदि-शक्ति या मूल-प्रकृति के अन्तर्गत आता है और जड़-चेतन का उत्पत्ति कर्त्ता एवं विलयकर्ता तथा आदि-शक्ति के स्वामी या पति रूप सर्वशक्ति-सत्ता सामर्थ्यवान् परमतत्त्वम् (आत्मतत्त्वम्) रूप या शब्द-ब्रह्म या परमब्रह्म या परमेश्वर या परमात्माखुदागॉड या सार्वभौम-सत्ता होता है । अब आइये पृथक्-पृथक् देखा जाय ।

जढ़ता:- शरीर और संपत्ती रूप जड़-जगत् में अपने चित्त को लगाकर शरीर और संपत्ति प्रधान वृति को कर लेना ही जढ़ता है। अर्थत् अपने शरीरपरिवार या शारीरिक सम्बन्धी जन तथा संपत्ति मात्र के विकास और व्यवस्था में ही अपने को लगाये रखना जढ़ता है। उदाहरण के लिये देखा-सुना जाता है कि झट से लोग कह देते हैं कि माता-पितापति-पत्नीपुत्र-पुत्रीनाती-नातिन आदि आदि हमारे आश्रित हैंआखिरकार उनकी सेवा क्या ईश्वर-परमेश्वर की सेवा से कम है यदि हम छोड़ देगें तो उन सबों को कौन देखेगा मेरे ईश्वर-परमेश्वर तो वही है। कहाँ ईश्वर-परमेश्वर आत्मा-परमात्मा कहता है कि परिवार छोड़ दोसम्पति छोड़ दोनौकरी छोड़ दो नौकरियाँ छोड़ देने पर भगवान खर्ची दे देंगे नौकरी दे देंगे? यह सब ढोंग है। मालूम पड़ता है कि सारा ईश्वर-परमेश्वरआत्मा-परमात्मा के सबसे बड़े जानकार यही है । इन जढ़ियों को कौन समझावे कि उनसे बढ़कर जढ़मूढ़अभिमानीमिथ्याज्ञानाभिमानीअहंकारी एवं व्यसनी तथा विषयी कोई क्या होगा? क्योंकि तुम्हारे सारे विधान ही जढ़ता मूलक हैं। शरीर तथा शारीरिक सम्बन्धों तथा सम्पत्ति हेतु लगावों में फँसे एवं लगे रहना ही जढ़ता है अर्थात् मैं और मेरातू और तेरा अथवा हम-हमारतुम-तुम्हार आदि बंधनों में बन्धे रहकर जीवन व्यतीत करने मात्र को ही अपना उद्देश्य या लक्ष्य मानकर मात्र उसी में लगे रहना ही जढ़ता है।

भ्रष्टता :- समाज में सत्य-न्याय-धर्म-नीति एवं समाज कानून विरोधी समस्त कार्य ही भ्रष्टता है।चोरी करनाडकैती या लूट करना तथा सरकारी एवं गैर-सरकारी कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा घूस लिया जाना आदि भ्रष्टता-मूलक कार्यों से सम्बंधित जानकारी मात्र ही यहाँ का विषय है। आइये अब पृथक-पृथक इन भ्रष्ट एवं घोर-भ्रष्ट कार्यों की तथा उसके परिणामों की जानकारी दिया लिया जाय।

भ्रष्टता तथा उसका नियन्त्रण:- सत्य-न्याय-धर्म एवं नीति विरोधी रहते हुये समाज एवं कानून की मर्यादा को स्वीकार करते हुये छिपकर –छिपाकर किसी की सम्पत्ति ले लेना चोरी करना है। कोई कार्य अपने आप में जीतने बड़ेजीतने ऊँचे एवं जिस किसी के द्वारा भी किया जाता हो और वह सत्य-न्याय-धर्म एवं नीति के प्रतिकूल या विरोधी है तो वह समाज के अन्तर्गत एक घृणित कार्य है अर्थात् उस-घृणित कार्य का कर्ता सर्वत्र ही घृणा की दृष्टि से देखा जाता हैवह समाज के अन्दर अन्तर्गत आदर सम्मान का पात्र तो हो ही नहीं सकता है । इतना ही नहींयदि वह सम्मानित या सज्जनों में जाना-देखा एवं गिना जाता होगाउसकी यथार्थतः सामाजिक मौत हो जाती है। जिन्दा रहते हुये भी मुर्दा से बदतर हो जाता है। जिधर जाता है मुख चुराकरमुख नीचे करके चलना या जाना पड़ता है। हम तो समस्त बंधुओं से स्पष्टतः बतला देना चाहते हैं कि अथक शारीरिक परिश्रम करके पारिश्रमिक से पेट-पाल लेना या शरीर की रक्षा-व्यवस्था कर लेना कर लेना तो अच्छा है परन्तु पेट-पालना या सम्पति विकास हेतु चोरी करना मौत से भी बदतर है । इससे तो मर जाना या शरीर को ही छोड़ देना अच्छा है क्योंकि जिस शरीर की रक्षा-व्यवस्था,  हम अच्छे,  सत्य-लाभ-धर्म एवं नीति के साथ सम्मानित रहते हुये नहीं कर सकते तो उस शरीर से क्या लाभ यदि शरीर से अपना उत्थान नहीं कर सकते तो समाज में अपना पतन ही क्यों करें पतन से तो अच्छा है कि जसका शरीर है उस (परमात्माखुदागॉडया सर्वोच्च शक्ति-सत्ता–सामर्थ्य) को सुपुर्द या वापस कर दें कि यह तेरी शरीर संसार में मेरे वश की नहीं है या तो तू इसे ले ले या हमें इससे अपना उत्थान एवं कल्याण का मार्ग एवं साधन दें। निकम्मा व्यक्ति ही कहता है कि हमें इससे अपना उत्थान एवं कल्याण का मार्ग एवं साधन दें। निकम्मा व्यक्ति ही कहता है कि हमें सेवा-कार्य या सर्विस ही नहीं मिल रही है। मैं तो करना ही चाहता हूँ। हालाँकि आज विश्व की यह एक जटिल समस्या बनी हुई है-बेकारी या बेरोजगारी। इसी को देखते हुये आज लगभग सभी सरकारें ही भ्रूण (गर्भ) जो कि परमात्माखुदागॉड या सर्वोच्च शक्ति-सत्ता सामर्थ्य का विधान हैउसी की हत्या(भ्रूण-हत्या) या समाप्ति(गर्भपात) जो हत्या के समान अपराध माना जाता हैआज कानूनी दृष्टि में वरदान हो गया हैपुरस्कार दिया जा रहा है। प्रलोभन देकर हत्याएँ की-करायी जा रही है जो विनाश का जबर्दस्त विश्वसनीय सूचना है और यहीं तो सरकारें दलील दे रही है जनसंख्या बढ़ गयाबेकारी और बेरोजगारी बढ़ गयीभूखमरी छा गयीसभी वस्तुयें आवश्यकता से कम हो रही है।यह सब सरकारी दलीलें झूठी है। विश्व के समस्त सरकारों को कहना चाइये कि हम निकम्मा हैंहमारे कर्मचारीअधिकारीविधायकसांसद एवं मन्त्री तक भी चोर हैघूसखोरी हैअत्याचारी हैं एवं भ्रष्टाचारी हैं। जन सेवी के स्थान पर जनस्वामी एवं जान-लेवी हैं। रक्षक के स्थान पर भक्षक हैं।पोशाक के स्थान पर शोषक हैं। समाज-मूलक के स्थान पर व्यक्ति एवं परिवार-मूलक हैं। समाज सेवी के स्थान पर कुर्सी या पद सेवी हैं तो बंधुओं विचार करने सोचने एवं ध्यान देने की बात यह है कि जब सरकारी कर्मचारी और अधिकारी मात्र ही नहींविधायकसांसद एवं मन्त्री जी सब चोरडाकूलुटेरे एवं जबर्दस्त ज़ोर-जुल्मियों के द्वारा उत्पन्न (बनाये गये)रक्षित-व्यवस्थित एवं संचालित आज भूखमरीआवश्यकतानुसार वस्तुओं की कमीबेकारी एवं बेरोजगारी के मूल में एकमात्र सत्य-न्याय धर्म एवं नीति के प्रतिकूल शिक्षा-पद्धतिगलत एवं भ्रष्ट शिक्षा पद्धतिजिससे विद्यार्थी ही गलत एवं भ्रष्ट होते हैंफिर समाज क्यों न हों ?

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