विश्व विद्वत् समाज एवं विश्व सरकारों को खुली चुनौती

मुजफ्फरपुर जेल २५/११/१९८२ ई॰
आज विश्व की समस्त सरकारें परेशान हैं जनसंख्या से ! बेकारी और बेरोजगारी से हर तरह भी कमियों एवं भूखमरी तथा नित्य बढ़ते हुये अपराधों से तो मैंपरमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान् या सर्वोच्च शक्ति-सत्ता सामर्थ्यवान का यथार्थतः साक्षात्कार एवं दरश-परश तथा सुस्पष्टतः पहचान कराने वाले सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस यह चुनौतीपूर्ण उद्घोषणा कर रहा हूँ कि मुझे कुर्सी नहीं चाहिये। मुझे कोई पद नहीं चाहिये। मुझे कोई मान-सम्मान नहीं चाहियेफिर भी मेरा एक ही उद्देश्य हैमेरा एक ही लक्ष्य है जिसके लिये मैं धरती पर आया हूँजिसके लिये कायम हूँ। दुनिया वालों पछताओगे! रोओगे! सिर धुन-धुन करलंगोटी पहन-पहन करजंगलों और कन्दराओं में ढूंढोंगेंमगर पाओगे नहीं! शरीर को तपा देना पड़ेगा---गला देना पड़ेगा फिर भी नहीं मिलूंगा! सिर पीट-पीट कर रोना पड़ेगाफिर क्या होगावही कि ---का बरषा जब कृषि सुखाने।समय चूक पुनि का पछताने ।। विश्व वालों ! क्यों परेशान हो जनसंख्या से ! जनसंख्या तुम नहीं बढ़ा रहे होबल्कि परमात्मा-खुदा-गॉड-भगवान या सर्वोच्च शक्ति-सत्ता-सामर्थ्य बढ़ा रहा है। तुम क्यों परेशान हो साढ़े छः अरब क्यासाढ़े छः खरब भी जनसंख्या हो जाय तब भी कोई परेशानी की बात नहीं। भ्रूण-हत्या एवं गर्भपात की बिल्कुल ही आवश्यकता नहीं। एक भी बेकार नहीं रहेंगे ।एक भी बेरोजगार नहीं रहेंगे। दुनिया में एक भी अपराधी नहीं रहेगा। मुकदमें खोजने पर भी नहीं मिलेंगे। अन्ततः विश्व के अन्तर्गत एक भी दुश्मन नहीं रहेगा तथा किसी भी प्रकार की कमीयहाँ तक दुख और बीमारी तक नहीं रहेगी। इसका अर्थ यह भी नहीं कि डाँक्टर बेकार हो जायेंगे। ये सारी बातें कोरी कल्पना नहींकोई स्वपन नहींकोई उपन्यासिक बात नहीं! ज्योतिषियों एवं भविष्यवक्ताओं कि सी बात नहीं अपितु परमब्रह्म-परमेश्वर या परमात्मा या परमसत्य का खुला निर्देश हैखुला एलान हैविश्व-समाज एवं विश्व की सरकारों को खुली चुनौती है। परन्तु शर्त यह है----सभी के लिये एक ही जादू हैसभी उपर्युक्त बीमारियों की एक ही औषधि है कि वर्तमान गलत एवं भ्रष्ट शिक्षा पद्धति के स्थान पर विद्यातत्त्वम् पद्धति’’ को जितना शीघ्र हो सकेउतना ही शीघ्र अर्थात् शीघ्रातिशीघ्र लागू किया जाय और लागू ही नहीं अनिवार्यतः रूप में प्रभावी स्तर पर इसे तुरन्त लागू कराया जाय। लागू होने के दस वर्ष में शतप्रतिशत लागू और कथित परिणाम न दे दे,तो मैं सहर्ष विश्व-मन्च के समक्ष हर कष्टों के साथ अन्तिम दण्ड तक को स्वीकार करने का बचन’—‘सत्यबचन देता हूँ ।
अन्ततः पुनः दुहराते हुये सत्यता के साथ बता देना चाहता हूँ कि विश्व की समस्त समस्यायें---जनसंख्याबेकारीबेरोजगारी हर प्रकार की कमीअपराधदुश्मनी एवं किसी भी प्रकार की परेशानी का एकमात्र आधार गलत एवं भ्रष्ट शिक्षा-पद्धति का होना ही हैजिससे कुव्यवस्थाअव्यवस्था एवं दुर्व्यवस्था जिसका अंततः परिणाम विश्व-विनाश तक का होना है परन्तु ही सशर्त एक ही उपाय विद्यातत्त्वम् पद्धति’’ का ईमानदार एवं प्रभावी तरह से शीघ्रातिशीघ्र लागू किया जाना। यह उपर्युक्त कथन मेरा लेख नहीं हैअपितु परमप्रभु परमब्रह्म-परमेश्वर या परमात्मा-खुदा-गॉड-भगवान या सर्वोच्च शक्ति-सत्ता-सामर्थ्यवान सार्वभौम सत्य द्वारा स्पष्टतः लिखवाया गया या बताया गया “सत्य वचन” है। अन्ततः शान्ति और आनन्द या अमन-चैन का राज्य होगा, सबको मुक्ति और अमरता मिलेगी, सभी निर्भयतापूर्वक सत्य-न्याय-धर्म एवं नीति को सहर्ष स्वीकार करेंगे। मिथ्या या असत्य, अन्याय या अत्याचार सुनने तक को नहीं मिलेगा, देखना तो दूर रहा। सत्यपुरुषों का ही राज्य होगा, सत्पुरुष ही रहा होंगे, सत्पुरुष ही शासन करेंगे। घोर से घोर मिथ्याभाषी, मिथ्याचारी, अन्यायी, अधार्मिक एवं भयंकर अत्याचारी एवं भ्रष्टाचारी को भी सुधार, सम्भाल एवं “ठीक” कर-करा देने की ताकत या सामर्थ्य यदि किसी में है तो वह एकमात्र “विद्यातत्त्वम् पद्धति” और परमात्मा-खुदा-गॉड-भगवान में ही है जो अब सामान्य मानव की तरह भू-मण्डल पर गुप्त रूप में विचरण या भ्रमण करते हुये निरीक्षण-सर्वेक्षण एवं अपने पवित्र आत्माओं को तलाशने, खोजने तथा इकट्ठा करने में लगा हुआ है, जिसके सेवा सहयोग से इस “विद्यातत्त्वम् पद्धति” को या परम सत्य-विद्या को प्रभावी तरीके से शीघ्रातिशीघ्र लागू कर कार्वा सके तथा इसका यश प्रदान कर सके क्योंकि परमात्मा को अपने लिए किसी भी प्रकार के यश की बात ही नहीं रहती है क्योंकि परमात्मा का न उत्थान है और न पतन ही। उत्थान-पतन तो मानव स्तर की बात है। यह लेख मेरा नहीं है – इसका मतलब है कि मुझ शरीर सदानन्द से है अर्थात् यह शरीर सदानन्द का लेख नहीं अपितु परमात्मा द्वारा लिखवाया एवं सदानन्द शरीर द्वारा लिखा हुआ “सत्य वचन” या “सत्य कथन” है। 

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